अयोध्या विवाद: निर्णय और हम।



अयोध्या विवाद: निर्णय और हम।

अयोध्या विवाद एक ऐसा विषय जिस पर कलम उठाने से पहले कई बार सोचना पड़ता है क्योंकि यह विवाद अपने आप में एक ऐसा काला इतिहास है जिसने हजारों लोगों के प्राणों की आहुति ली, हजारों लोग बेघर हुए, बच्चे अनाथ और महिलाएं विधवा हुई, बेशुमार संपत्ति का नुकसान हुआ पर ये विवाद दिन ब दिन बढ़ता गया।

विवाद आखिर क्या और क्यों है? में इसके अतीत के उन भयावह दिन और काली रातों के बारे में बिल्कुल बात नहीं करना चाहता। इन पर बात करना सिर्फ समय नष्ट करना और कुछ हासिल नहीं। बस संछिप्त में इतना समझना है कि हमारे देश का एक प्रमुख राज्य जो अपनी ऐतिहासिक, धार्मिक, समाजिक दृष्टि की वजह से बहूुत महत्वपूर्ण है, राजनीतिक दृष्टि से देखा जाए तो ये राज्य भारत की राजनीति का नेतृत्व भी करता है। वर्तमान में हमारे प्रधानमंत्री जो गुजरात के निवासी है लेकिन लोकसभा में वो वाराणसी का प्रतिनिधित्व करते हैं भारत को सबसे अधिक प्रधानमंत्री भी इसी राज्य ने दिए हैं, इलेक्शन में भी यही माना जाता है कि उत्तर प्रदेश में जिस दल को अधिक सीटें मिलेंगी प्रधानमंत्री उसी का होगा।

विवाद का स्थान

इसी प्रदेश की राजधानी लखनऊ के पास एक छोटी सी जगह अयोध्या है। इस अयोध्या नामक नगरी में एक स्थान पर मुगल कालीन एक मस्जिद, जो प्रथम मुगल शासक बाबर के सेना नायक मीर बाकी द्वारा निर्मित की गई थी और ५ दिसंबर १९९२ तक स्तिथ थी। लेकिन राजनीतिक कारणों से दिन दहाड़े प्रशासन की उपस्थिति में ६ दिसंबर १९९२ को ये मस्जिद तोड़ दी गई।(राजनीतिक इसलिए की एक राजनीतिक पार्टी शून्य से शिखर पर राम मन्दिर आंदोलन से ही पहुंच गई) अब वहां पर मस्जिद नहीं बल्कि उस मस्जिद के मलबे का ढेर है। अब विवाद ये है कि इस मस्जिद वाले स्थान पर हिन्दू समुदाय भी अपनी आस्था होने का दावा करता है। उस समुदाय का दावा है कि जिस जगह पर मस्जिद बनी थी वो असल में श्री राम जी का जन्म स्थान है उनका ये भी कहना है कि इस स्थान पर एक मन्दिर था जिस को तोड़कर मुगल सेनापति ने बाबरी नामक मस्जिद का निर्माण किया, लेकिन मुस्लिम समुदाय इस आरोप को नकारता है और उसका मानना है कि ये स्थान एक मस्जिद है और किसी भी मन्दिर को तोड़कर नहीं बनाई गई है। 

कानूनी लड़ाई

दोनों समुदाय अपने अपने दावों के साथ अदालत में कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। ये मुकददमेबाजी लगभग ७० वर्षों से जारी है। निचली अदालतों के निर्णय से दोनों समुदायों संतुष्ट नहीं हुए और अंत में सुप्रीम कोर्ट की शरण में आ चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट में भी इस मुकददमेबाजी पर कई वर्ष लग गए। लेकिन हालिया दिनों में सुप्रीम कोर्ट में ४० दिनों की तेज सुनवाई  के बाद फैसला सुरक्षित कर लिया गया है और ऐसी आशा है कि १७ नवम्बर तक ऐतिहासिक फैसला आजाएगा।

लोगों की निगाहें अब इसके फैसले पर टिकी हैं। तरह तरह की अटकलों का बाजार गर्म है। दोनों पक्ष अपनी जीत का दावा करते दिख रहे हैं। लेकिन इस ऐतिहासिक फैसले से पहले सबसे अच्छी बात ये उभर के आयी है कि दोनों समुदायों की तरफ से कोर्ट के निर्णय को लेकर संयम रखने की अपील की गई है। ये देश के लिए अच्छे संकेत हैं। 

निर्णय की प्रतीक्षा

इस ऐतिहासिक मुकदमें का जनता को बेसब्री से इंतजार है, लेकिन भारत की जनता के लिए ये समय है कि वो देश के प्रति अपने दायित्व और कर्तव्य का निर्वाह करें याद रखें, ये मुकदमा दो पक्षों के बीच है और इसका फैसला दोनों समुदाय को प्रभावित करेगा। इसलिए हम सब का ये दायित्व बनता है कि हम सब मन से प्रतिज्ञा करें कि भारत का सुप्रीम कोर्ट इस पर जो भी फैसला देगा, वो भले ही हमारे विपरीत हो हम उसका सम्मान करेंगे और साथ ही साथ किसी भी प्रकार का रोष और क्रोध का प्रदर्शन नहीं करेंगे। और यदि फैसला पक्ष में आजाए तब भी हम दूसरे समुदाय को किसी तरह के अपशब्द नहीं कहेंगे, और न ही किसी भी प्रकार के जश्न का आयोजन करेंगे। याद रखें लड़ाई हमेशा एक दूसरे पर कटाक्ष और भावनाएं आहत करने से होती है।इसलिए प्रयास यहीं करें की एक दूसरे कि भावनाओं का आदर हो, शांति और हमारी एकता बनी रहे। जनता को ये भी समझना होगा कि कुछ भड़काऊ और राजनीतिक रोटियां सेकने वाले लोग दोनों समुदाय में पाए जाते हैं, बस इस प्रकार के लोगों का बॉयकॉट करना है। 

सरकार का कर्तव्य

जनता के अलावा हमारी सरकार का सर्वप्रथम दायित्व है कि वो देश में शांति स्थापित करे। और इस दिशा में सरकार गंभीर भी नजर आरही है। केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी के घर पर दोनों समुदाय के लोगों की बेहद सार्थक मुलाकातें भी हुईं। प्रधानमंत्री ने भी लोगों से फैसले को लेकर शांति की अपील की है। प्रधानमंत्री का बयान स्वागत योग्य है।
             
में समझता हूं कि प्रधानमंत्री मोदी के समय जितनी बड़ी घटनाएं हुईं शायद दूसरे भारतीय प्रधानमंत्री के कार्यकाल में न हुई होंगी। जिसमें नोटबन्दी, जी एस टी, चांद पर छलांग, मंगल ग्रह पर मंगलयान का सफल मिशन, तीन तलाक़ और धारा ३७० शामिल हैं। लेकिन अयोध्या से जुड़ा ये मामला एक बेहद गम्भीर मामला है, और अब ये विवाद अंत की ओर है। इसलिए सरकार के सामने सबसे कठिन चुनौती सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू करना और उसके बाद देश में शांति स्थापित करना है। मुझे पूर्ण आशा है कि सरकार इस परीक्षा में अच्छे अंकों से कामयाब होगी। 

एक सुझाव

एक अमन पसंद भारतीय होने के नाते मेरी भारत सरकार से आग्रह है कि अगर वो तीन चीजों पर निर्णय के उपरांत प्रतिबंध लगा दे तो मुझे लगता है कि देश में शांति स्थापित करने में सरकार को बड़ी सहायता मिलेगी। पहली चीज है कि सुप्रीम कोर्ट के डिसीजन पर किसी भी न्यूज चैनल पर डिबेट नहीं होनी चाहिए। न्यूज चैनल वाले अपनी टीआरपी के चक्कर में अपना कर्तव्य भूल जाते हैं। दूसरा काम सरकार ये के सकती है कि निर्णय के बाद किसी भी तरह के जुलूस, नारेबाजी, शौर्य दिवस और शोक दिवस पर पूरी तरह ६ महीने के लिए प्रतिबन्ध लगा दे। 

वर्तमान सरकार अपने एजेंडे में विकास शब्द का प्रयोग करती है, में समझता हूं विकास किसी भी समाज में २ चीजों पर निर्भर करता है एक न्याय और दूसरा शांति। बिना इन दो चीजों के विकास का सपना तो देखा जा सकता है पर इसको पूरा नहीं किया जा सकता। जब न्याय होता है और शांति स्थापित हो जाती है तब विकास का पहिया चलना शुरू हो जाता है और फिर एक समृद्ध समाज का निर्माण होजाता है।

अंत में मुझे पूरा विश्वास है कि की हम सब भारतीय समाज के लोग सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद और अधिकता से एकता एक दूसरे का सम्मान और शांति के साथ भारत को और अधिक मजबूत बनाने का प्रयास करेंगे। अवश्य, अवश्य, अवश्य...........

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