स्वच्छ भारत अभियान: कमज़ोरियाँ, चुनौतियाँ और समाधान



प्रस्तावना

भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में स्वच्छता हमेशा से एक गंभीर चुनौती रही है। सदियों से खुले में शौच, कचरा प्रबंधन की कमी, नालियों का जाम होना, सड़कों पर गंदगी और ठोस-तरल अपशिष्ट का गलत निपटान – ये समस्याएँ न केवल लोगों के स्वास्थ्य पर असर डालती हैं बल्कि हमारे सामाजिक और आर्थिक विकास में भी बाधा डालती हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में स्वच्छता की कमी के कारण हर साल लाखों लोग जलजनित बीमारियों से प्रभावित होते हैं। इसी समस्या को देखते हुए 2 अक्टूबर 2014 को महात्मा गांधी की जयंती पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छ भारत अभियान (Swachh Bharat Abhiyan) की शुरुआत की। इसका मुख्य उद्देश्य था –

  • भारत को खुले में शौच से मुक्त (ODF) बनाना,
  • ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन को मज़बूत करना,
  • और नागरिकों में स्वच्छता के प्रति जागरूकता पैदा करना।

हालाँकि इस अभियान ने बड़े पैमाने पर जागरूकता फैलाई और करोड़ों शौचालयों का निर्माण हुआ, लेकिन इसके साथ कई कमज़ोरियाँ भी सामने आईं। यदि इन पर गहराई से विचार कर सही कदम उठाए जाएँ, तो यह अभियान और अधिक स्थायी और प्रभावी बन सकता है।


स्वच्छ भारत अभियान की प्रमुख कमज़ोरियाँ

1. शौचालय निर्माण और उपयोग में अंतर

सरकारी आँकड़ों के अनुसार, देशभर में लाखों शौचालय बनाए गए। लेकिन सर्वेक्षण बताते हैं कि कई जगह लोग अभी भी खुले में शौच करते हैं। वजहें –

  • परंपरागत आदतें,
  • शौचालय को "गंदा स्थान" मानना,
  • और सुविधाजनक स्थानों पर निर्माण न होना।

2. गुणवत्ता और रखरखाव की समस्या

कई शौचालय जल्द ही टूट-फूट जाते हैं। पानी और सफाई की सुविधा न होने के कारण वे अनुपयोगी हो जाते हैं। ऐसे मामलों में परिवार उन्हें स्टोर रूम या अन्य कामों के लिए इस्तेमाल करने लगते हैं।

3. पानी की कमी

ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में पानी की भारी कमी है। जहाँ पानी ही मुश्किल से मिलता है, वहाँ शौचालय का नियमित उपयोग चुनौती बन जाता है। साथ ही, सीवरेज और गंदे पानी की निकासी की व्यवस्था अक्सर अधूरी रहती है।

4. व्यवहार परिवर्तन और जागरूकता की कमी

स्वच्छता केवल भौतिक संरचना (Toilets) से नहीं, बल्कि आदतों और सोच से आती है। अभियान में जागरूकता फैलाने की बजाय ज़ोर निर्माण पर अधिक रहा। इससे दीर्घकालिक बदलाव धीमा रहा।

5. निगरानी और पारदर्शिता की कमी

कई जगह आँकड़ों में गड़बड़ी सामने आई। "कागज़ पर शौचालय बने, ज़मीन पर नहीं" – यह समस्या ग्रामीण इलाकों में आम है। साथ ही फंड की गड़बड़ी भी अभियान को प्रभावित करती है।

6. समानता और समावेशन की कमी

आदिवासी समुदाय, गरीब परिवार और दूरदराज़ के गाँव कई बार योजना से वंचित रह जाते हैं। महिलाओं की सुरक्षा और गोपनीयता की जरूरत को पर्याप्त महत्व नहीं दिया गया। मासिक धर्म स्वच्छता पर ध्यान बहुत कम रहा।

7. ODF स्थिति की स्थिरता

कई गाँवों को ODF घोषित कर दिया गया, लेकिन कुछ ही महीनों बाद लोग फिर से खुले में शौच करने लगे। कारण – शौचालयों का खराब रखरखाव और पानी की अनुपलब्धता।

8. ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन की उपेक्षा

अभियान में ज़ोर शौचालय निर्माण पर रहा, जबकि ठोस (Solid Waste) और तरल (Liquid Waste) कचरे के वैज्ञानिक निपटान की दिशा में पर्याप्त प्रयास नहीं हुए।

9. नीति और लक्ष्य में अस्थिरता

अत्यधिक महत्वाकांक्षी समय-सीमाएँ तय की गईं, जिससे कई जगह आँकड़े बढ़ा-चढ़ाकर दिखाए गए।


इन कमज़ोरियों के समाधान

1. शौचालय उपयोग सुनिश्चित करना

  • ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता दूत नियुक्त किए जाएँ।
  • पंचायत स्तर पर "स्वच्छता प्रतियोगिता" कराई जाए।
  • आदत बदलने के लिए स्थानीय भाषा में नाटक, गीत और वीडियो बनाए जाएँ।

2. गुणवत्ता और रखरखाव पर ध्यान

  • निर्माण के लिए मानक डिज़ाइन और सामग्री अनिवार्य की जाए।
  • हर शौचालय के लिए वार्षिक रखरखाव फंड पंचायत को दिया जाए।
  • उपयोगकर्ताओं को रखरखाव की ट्रेनिंग दी जाए।

3. पानी और आधारभूत ढाँचे का विकास

  • वर्षा जल संचयन और पाइपलाइन जल योजना को शौचालयों से जोड़ा जाए।
  • छोटे स्तर पर बायो-टॉयलेट और सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाए जाएँ।

4. व्यवहार परिवर्तन और शिक्षा

  • स्कूलों में "स्वच्छता पाठ" अनिवार्य किया जाए।
  • बच्चों के माध्यम से परिवारों तक संदेश पहुँचाया जाए।
  • सोशल मीडिया और टीवी पर प्रेरक विज्ञापन बनाए जाएँ।

5. पारदर्शिता और निगरानी

  • GPS और मोबाइल ऐप से शौचालय निर्माण की निगरानी हो।
  • सोशल ऑडिट को अनिवार्य किया जाए।
  • भ्रष्टाचार की शिकायतों के लिए हेल्पलाइन बनाई जाए।

6. समानता और समावेशन

  • आदिवासी और गरीब इलाकों के लिए विशेष पैकेज
  • महिलाओं और दिव्यांगों के लिए अनुकूल डिज़ाइन।
  • स्कूलों और सार्वजनिक स्थानों पर सेनेटरी पैड मशीन और डिस्पोजल सिस्टम।

7. ODF स्थिति को स्थायी बनाना

  • पंचायतों को ODF++ पुरस्कार और अतिरिक्त फंड दिया जाए।
  • नियमित निरीक्षण और निगरानी व्यवस्था लागू हो।

8. ठोस और तरल कचरा प्रबंधन

  • घर-घर गीला-सूखा कचरा अलग करने की व्यवस्था।
  • गाँव-शहर में कंपोस्टिंग यूनिट और रीसाइक्लिंग प्लांट
  • तरल अपशिष्ट के लिए बायोगैस प्लांट और फिल्टर प्रणाली।

9. वित्तीय सहयोग

  • गरीब परिवारों को पूरी सब्सिडी या आसान किस्तों पर निर्माण सुविधा।
  • CSR (कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी) के तहत कंपनियों की भागीदारी।

10. नीति में स्थिरता

  • केवल शौचालय निर्माण नहीं, बल्कि समग्र स्वच्छता संस्कृति बनाने पर ध्यान।
  • दीर्घकालिक रोडमैप और सतत निगरानी।


केस स्टडी और उदाहरण

  1. सूरत शहर – यहाँ नगर निगम ने घर-घर कचरा संग्रहण और कचरे के वैज्ञानिक निपटान को अपनाकर भारत के सबसे स्वच्छ शहरों में जगह बनाई।
  2. इंदौर – लगातार कई वर्षों तक भारत का सबसे स्वच्छ शहर घोषित हुआ। इसका कारण है – लोगों की भागीदारी, ठोस कचरा प्रबंधन और पारदर्शी व्यवस्था।
  3. त्रिपुरा के गाँव – जहाँ लोगों को जागरूक करने के लिए स्थानीय भाषा में नाटक और गीतों का इस्तेमाल किया गया, जिससे शौचालय उपयोग में बड़ी बढ़ोतरी हुई।

इन उदाहरणों से साफ है कि जब स्थानीय प्रशासन, जनता और सरकार मिलकर काम करते हैं तो स्वच्छ भारत अभियान के लक्ष्य पूरे हो सकते हैं।


निष्कर्ष

स्वच्छ भारत अभियान ने भारत की स्वच्छता यात्रा में ऐतिहासिक शुरुआत की है। करोड़ों शौचालय बनाए गए, लोगों में सफाई के प्रति जागरूकता आई और कचरा प्रबंधन पर ध्यान बढ़ा। लेकिन अभी भी कई चुनौतियाँ हैं – शौचालय का उपयोग, रखरखाव, पानी की उपलब्धता, कचरा प्रबंधन और व्यवहार परिवर्तन।

यदि सरकार, स्थानीय प्रशासन और जनता मिलकर काम करें, पारदर्शिता और निगरानी को मज़बूत करें, और जागरूकता को प्राथमिकता दें, तो यह अभियान केवल एक योजना नहीं बल्कि जन-आंदोलन बन सकता है।

महात्मा गांधी ने कहा था – “स्वच्छता स्वतंत्रता से भी अधिक महत्वपूर्ण है।”
जब हर नागरिक इसे अपनी ज़िम्मेदारी मान लेगा, तभी वास्तविक “स्वच्छ भारत” का सपना साकार होगा।


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