भारत में आज चाँद नज़र आगया है और कल जुमे यानी 14 मई को ईद मनाई जाएगी वो भी कोरोना के मनहूस साये में। ईद का चाँद इस बात की घोषणा है कि रमज़ान का पवित्र महीना समाप्त हो गया। इस्लामिक कैलेण्डर में प्रत्येक मास का प्रारम्भ चाँद को देखने से ही होता है लेकिन मुस्लिम समुदाय में ईद के चाँद को देखने की जितनी प्रसन्नता और कोशिश की जाती है उतना दूसरे महीनों के चाँद की नहीं होती है हालांकि प्रत्येक महीने के चाँद को देखने का धार्मिक महत्व है।
इस मनहूस कोरोना से पहले तक पवित्र रमजान के 29 वें रोज़े में शाम होते ही लोग अपनी अपनी छतों पर या किसी ऊँची जगह पर इकठा हो जाते थे। फिर शुरू होती थी सबसे पहले चाँद देखने की एक तरह की प्रतियोगता। तरह तरह के आवाज़ें लोगों के बीच से आती थीं, इधर देखो ये रहा चाँद, अरे नहीं-नहीं वो उधर देखो, कोई कहता थोड़ा नीचे, दूसरा जल्दी से कहता थोड़ा ऊपर देखो, और इस तरह कुछ मिनटों तक ये मज़ेदार बहस चलती और एक होड़ सी लगी रहती थी कि पहले वो कौन भाग्यशाली होगा जो सबसे पहले ईद के चाँद को देखेगा।
असल में सबसे पहले चाँद देखने की एक अलग ही ख़ुशी होती थी। इसके अलावा उस व्यक्ति के नेत्र दृष्टि की भी बड़ी प्रशंसा होती थी और उस की आँखों को सटीकता का प्रमाण पत्र भी मिल जाता। चाँद देखते समय पवित्र महीने के समाप्त होने का काफी कष्ट होता था। लेकिन जैसे ही चाँद नज़र आता था। तो सभी ईद की खुशियों में इस उम्मीद के साथ डूब जाते थे कि अल्लाह हम सब को अगले वर्ष फिर पवित्र रमज़ान का महीना देगा। चाँद के नज़र आते ही मुबारकबाद का सिलसिला शुरू हो जाता था। मुबारकबाद के बाद धीरे धीरे लोग अपने घरों को वापस जाते थे।
चाँद से जुड़ा एक संस्कार ये भी है कि चाँद देख कर जब लोग घर लौटते थे तो अपने से बड़ों अर्थात दादा- दादी, माता-पिता, भाई-बहन को सलाम करते और उनसे दुआएं लेते थे, यहाँ तक की पड़ोस के बुज़ुर्गो को भी इस अवसर पर नहीं भूला जाता था। यदि कोई घर का सदस्य घर से दूर परदेस में है तो वह फ़ोन से अपने बड़ों को सलाम अवश्य करता।
लेकिन इस बार कोरोना के आतंक ने मानव जाति की हर गतिविधि पर ब्रेक लगा दिया तो ईद का चाँद भी इससे अछूता न रह सका। कोरोना के प्रकोप के कारण इस बार ईद के लिए न तो उत्साह और न ही खुशियां हैं और चाँद देखने में केवल धार्मिक कर्तव्य की पूर्ती मात्र है। चाँद देखने का किसी में कोई उत्साह नहीं है। में भी छत पर जब चाँद देखने गया तो छत पर सिर्फ में और मेरा बेटा था और जब दूसरी छतों की ओर नज़र गयी तो इक्का दुक्का लोग ही नज़र आये। चाँद कुछ देर में नज़र आगया। चाँद तो देखा लेकिन मन बहुत भारी हुआ, सोचा कहाँ चाँद को बहुत से लोगों के साथ देखने का मज़ा था पर आज सिर्फ अपने बेटे के साथ। फिर अल्लाह से दुआ की कि हे मेरे रब अब इस कोरोंना को इस संसार से हमेशा के लिए समाप्त करदे ताकि फिर ऐसी सुनसान ईद दोबारा देखने को न मिले।
चाँद से जुड़ा एक संस्कार ये भी है कि चाँद देख कर जब लोग घर लौटते थे तो अपने से बड़ों अर्थात दादा- दादी, माता-पिता, भाई-बहन को सलाम करते और उनसे दुआएं लेते थे, यहाँ तक की पड़ोस के बुज़ुर्गो को भी इस अवसर पर नहीं भूला जाता था। यदि कोई घर का सदस्य घर से दूर परदेस में है तो वह फ़ोन से अपने बड़ों को सलाम अवश्य करता।
लेकिन इस बार कोरोना के आतंक ने मानव जाति की हर गतिविधि पर ब्रेक लगा दिया तो ईद का चाँद भी इससे अछूता न रह सका। कोरोना के प्रकोप के कारण इस बार ईद के लिए न तो उत्साह और न ही खुशियां हैं और चाँद देखने में केवल धार्मिक कर्तव्य की पूर्ती मात्र है। चाँद देखने का किसी में कोई उत्साह नहीं है। में भी छत पर जब चाँद देखने गया तो छत पर सिर्फ में और मेरा बेटा था और जब दूसरी छतों की ओर नज़र गयी तो इक्का दुक्का लोग ही नज़र आये। चाँद कुछ देर में नज़र आगया। चाँद तो देखा लेकिन मन बहुत भारी हुआ, सोचा कहाँ चाँद को बहुत से लोगों के साथ देखने का मज़ा था पर आज सिर्फ अपने बेटे के साथ। फिर अल्लाह से दुआ की कि हे मेरे रब अब इस कोरोंना को इस संसार से हमेशा के लिए समाप्त करदे ताकि फिर ऐसी सुनसान ईद दोबारा देखने को न मिले।
5 टिप्पणियाँ
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ReplyVery well written
Replyभौत्त अच्छा लिखा है आपके विचार अच्छा है
Replyआपने जो आर्टिकल लिखा है bhaut ही बढ़िया है आपको ईद मुबराक हो और आपसे निवेदन है की आप ऐसे आर्टिकल लिखते रहे
thnks
ReplyAmazing
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